संत रविदास जी के जीवन के अनसुने रहस्य

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आपको आज इस ब्लॉग के माध्यम से संत रविदास जी के जीवन परिचय और उनके जीवन में घटी रहस्यमई अनसुनी बातों को हम आज उजागर करेंगे। हम कुछ निम्नलिखित विषय पर चर्चा करेंगे-

    संत रविदास जयंती 2021- Guru Ravidas Jayanti

    पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो शुरू से ही संत महात्माओं का केंद्र रहा है यहां पर अनेकों परम संतों का आगमन हुआ है जिन्होंने भारत में भक्ति भाव को बनाए रखने में बहुत सहायक हुए हैं। इन्हीं परम संतो की श्रेणी में संत रविदास जी भी है इन्होंने ना केवल खुद भक्ति करके बल्कि सभी लोगों को भक्ति मार्ग बताया और उन का मार्ग प्रशस्त किया परम संत कबीर दास जी ने संत रविदास जी को भक्ति भाव में ध्रुव प्रह्लाद की तरह अपना हृदय प्रियम माना है

    संत रविदास जी की जयंती 2021 में कब है ?

    पिछले वर्ष 2020 में रविदास जी की जयंती 9 फरवरी को थी और इस वर्ष संत रविदास जी की जयंती 27 फरवरी 2021 को मनाई जाएगी।

    संत रविदास जी का जीवन परिचय - biography of Guru Ravidas

    संत गुरु रविदास जी का जन्म चर्मकार जाति में बनारस स्थान के नजदीक हुआ था। इनकी जन्मतिथि को लेकर काफी मतभेद है। लेकिन परंपरागत कर्मदास जी के दोहे के अनुसार इनकी जन्म तिथि रविवार माघ पूर्णिमा 1433 वी.स. है।

    उनके पिता का नाम संतोष दास (इनका भी भक्ति मार्ग में बहुत विश्वास था) और माता का नाम कलसा देवी था।
    यह चमार जाति में होने के बावजूद भी कई वानियो में खुद का परिचय निसंकोच चमार के रूप में लिखकर किया है- 
    कहै रविदास, खलास चमारा।।
    जो हम सहरी, सो मीत हमारा।

    संत रविदास जी के द्वारा समाज में प्रचलित बुराइयों का विरोध 

    संत रविदास जी ने समाज में फैली बुराइयों ऊंच-नीच, जातिवाद, छुआछूत को दूर करने का प्रयास किया
    संत रविदास जी ने समाज में चल रहे कर्मकांड का विरोध करके सैकड़ों जनेऊधारी ब्राह्मणों को अपने शरीर के अंदर सोने का जनेऊ दिखाया और समझाया कि सत भक्ति से ही परमात्मा को पाया जा सकता है (संपूर्ण कथा विस्तृत वर्णन आगे किया गया है)

    संत रविदास जी को गंगा मैया द्वारा सोने का कंगन देना

    एक समय एक रानी थी संत रविदास जी की शिस्या होगी संत रविदास जी कबीर परमात्मा की शरण में नहीं आया था वह रहते थे तो कबीर साहिब जी के साथ ही में थे लेकिन परमात्मा ने उनको शरण में नहीं लिया था क्योंकि रामानंद जी से उनको दीक्षा दिलवाई थी ।

    Guru Ravidas Jayanti Story In Hindi:-

    एक ब्राह्मण था रविदास जी के पास गया और कहने लगा की रविदास जी गंगा में नहा कर आते हैं रविदास जी कहने लगे की - भाई... ( रामानंद जी को परमात्मा कबीर साहेब जी ने ज्ञान दिया था और रामानंद जी ने रविदास जी को तथा रविदास जी को ज्ञान जचा रखा था । 
    रविदास जी कहने लगे हमारे गंगा तो हमारा यहीं पर हैं:-
    सिमरन है और हम गंगा में नहीं जाते ब्राह्मण ने रविदास (Ravidas) जी को काफी कहा लेकिन रविदास जी नहीं माने। तो आखिर में ब्राह्मण कहने लगा की गंगा में कुछ पैसे डालने हो तो दान-पुण्य के खातिर दे दियो, हम डाल देंगे। ब्राह्मण ने सोचा था कि कुछ पैसे देंगे हम अपनी जेब में डाल देंगे और कह दूंगा की डाल आया गंगा में तो रविदास जी कहने लगे कि एक काम करिए कि यह ₹1 ले जा मेरा और गंगा जी जब हाथ निकालकर पैसे ले ले जब गंगा हाथ निकालकर ले तभी देना नहीं तो वापस ले आना। 
    Guru Ravidas Jayanti:- ब्राह्मण सोचा कौन देखेगा मैं अपने जेब में डाल दूंगा और कह दूंगा की डाल आया गंगा में। उसने एक बार तो गंगा में जाकर कह दिया कि भगत रविदास (ravidas) ने आपके लिए ₹1 भेजा है और कहा है कि जब आप हाथ निकाल कर लो तभी देना यह सुनते ही एकदम हाथ निकल आया बाहर और ले लिया। और दूसरे हाथ में एक सोने का कंगन निकला एकदम सुंदर वह पंडित जी को दे दिया और गंगा ने कहा- यह उस परम संत को दे देना। सोने का कंगन और पंडित जी के आ गया बेईमाना कि क्या पता चलेगा रविदास जी को रख लिया अपने जेब के भीतर और उसने आकर वह कंगन राजा को दे दिया। कि राजा को दे दूंगा तो अच्छे पैसे मिलेंगे इसके, राजा ने उस कंगन को अपनी रानी को दे दिया। रानी ने कहा इसके जैसा एक और कंगन होना चाहिए, जोड़ा होता है। उसके कुछ पैसे दे दिया ब्राह्मण को जितने भी उसके 20,30, ₹50 बनते थे । राजा ने ब्राह्मण से कहा कि इसके जैसा एक और चाहिए अगर नहीं मिला तो तेरा बक्कल उतारेंगे। ब्राह्मण ने सब जगह देख लिया लेकिन उसके जैसा कंगन नहीं मिला। आखिर में हुआ दुखी होकर बैठ गया कि अब जान निकलने वाली है तो वह रविदास जी के पास चला कि शायद रविदास जी एक रुपैया फिर से दे दे और उसे में गंगा को दे दूं और कंगन ले आऊं। यह सोचकर वहां रविदास जी के पास गया। और कहने लगा कि भगत जी कि आपके हाथ में मेरे परिवार की जान है (जब राजा ने एक दो बार नकारा कर दिया, तो राजा बोला यह रानी का आदेश है की नहीं तो यह कंगन ले आ नहीं तो तेरे पूरी परिवार की जान गई। पहले राजाओं की जबान ही कानून होती थी। अब वह बहुत डर गया फिर आया आखरी में रविदास जी के चरणों में पड़ गया। और रोने लगा पड़ा पड़ा।) 
    रविदास जी बोलने लगे क्या हो गया क्या हो गया ब्राह्मण जी क्या बात हो गई वह बोला की जान बचा लो आज आपके हाथ में मेरी परिवार की जान है रविदास जी बोले पूरी कहानी बता क्या बात है ब्राह्मण बोलने लगा कि आपने जो रुपैया दिया था वह मेरी जान का झाड़ हो गया रविदास जी बोले कि कारण बता। पहले तो तू यह बता कि मेरे उस ₹1 का क्या हुआ कि मेरा उस रुपैया को तेरी गंगा मैया ने लिया कि नहीं। न्यू बोला कि कि वह रुपैया मैया ने लिया और एक हाथ से रुपैया पकड़ लिया और दूसरे हाथ से कंगन दे दिया सोने का और मेरे को आ गया लालच और मैंने दे दिया राजा को, राजा ने मुझे ₹50 दे दिए उसके। अब राजा ने उस कंगन को रानी को दे दिया और रानी ने जिद कर दी कि मुझे इसके जैसा एक और चाहिए कि कंगन का जोड़ा होता है और मुझे वह दूसरा जोड़ा कहीं मिल नहीं रहा सारे सर पटक लिया (ब्राह्मण ने कहा)। राजा का आदेश है कि अगर मैं उस दूसरे कंगन को नहीं लेकर गया तो वह मेरे पूरे परिवार को खत्म कर देगा ब्राह्मण बोला है कि ₹1 और दे दे मुझको मैं गंगा मैया को देकर वह कंगन ले आऊंगा। 
    जहां रविदास जी जूते बना रहे होते थे वहां एक कुंडा हुआ करता था पानी का (एक पानी का कुंडा हुआ करता था जैसे डोंगा टाइप मिट्टी का उसे जमीन में गाड़ दिया करते थे) उसमें डोरी गीली रखते थे वह, जूते गाट बनाते थे वो इसीलिए डोरी गीली रखते थे उसमें चाम भी भिगोकर रखते थे (चमड़े को भिगोकर रखते थे)। 
    पहले जो यह चमार होते थे वह जीव हिंसा का चाम नहीं लेते थे, कोई पशु-जीव स्वभाविक मर जाता था उसी का चाम लेते थे। वह पाप के भागी नहीं होते थे। तो उसमें चा में भी भिगोकर रखा गया था कपड़ा कुंड में। रविदास जी बोले इस कुंड में हाथ देकर निकाल ले जितने कंगन चाहिए पहले तो ब्राह्मण पंडित जी बहुत दूर बैठा था। मरता क्या नहीं करता वह हाथ दे दिए उस चाम के पानी में। जैसे ही उसने उसमें हाथ दिया तो उसके हाथ में तीन चार कंगन आ गए बिल्कुल एक जैसे। रविदास जी बोले एक ले ले और बाकी को यहीं पर रख दें नहीं तो शामत आ जाएगी तेरे ऊपर, एक ले जा अपना। ब्राह्मण का तो कलेजा फटने में आ रहा था वह एक लेकर भाग निकला। रानी ने बोला कि यह तू लाया कहां से, पहले तो तुम मना कर रहा था।

    संत रविदास जी महाराज द्वारा रानी को दीक्षा देना

    ब्राह्मण ने सब कुछ सच-सच बता दिया रानी को रानी उससे इतनी प्रभावित हुई कि रविदास जी से कि रानी ने रविदास जी को गुरु बना लिया।

    संत रविदास जी द्वारा 700 ब्राह्मणों को अपनी शरण में लेना

    एक दिन रानी ने धर्म भंडारा किया, एक भोज देना चाहा उसने उसके पुत्र की जन्मदिन की खुशी में। उसमें 700 तो ब्राह्मण आ गए और उधर से गुरु जी को भी आमंत्रित करना जरूरी था। जी गुरु जी की आज्ञा के बिना कोई अनुष्ठान नहीं करना चाहिए। रविदास जी को भी बुला लिया, रविदास जी को रानी ने आदर सत्कार से अलग सुंदर आसन बिछाकर उसके ऊपर विराजमान कर दिया। उधर से उन सभी ब्राह्मणों को न्योता दे दिया। सभी साथियों ब्राह्मण आकर एक पंक्ति के रूप में भोजन के लिए बैठ गए। और उधर से भोजन परोसना शुरू कर दिया, सामने भोजन परोस दिया जब जब तक भोजन नहीं आ जाता तब तक यह सोचते थे कि क्या लाएंगे भोजन में की जलेबी आएगी, लड्डू आएगा। वह ध्यान नहीं रहता कि कौन कहां पर बैठा है जब पूरी थाली भर ली तब देखा उन्होंने इधर-उधर करके, कि यहां तो चमार बैठा है सारे खड़े हो गए कि रानी तूने हमारी बेज्जती कर दी है। हम भोजन नहीं करेंगे तूने यहां चमार बैठा रखा है तूने तो हमारा दिन भ्रष्ट कर दिया, हम तो ब्राह्मण हैं। रानी बोलने लगी कि ब्राह्मणों रोटी खानी है तो खा लो, मेरे गुरु जी तो यही बैठेंगे यह नहीं उठेंगे यहां से। अब रविदास जी बोलने लगे की रानी बात सुन बेटी, कि आए अतिथि का अनादर नहीं करते उसका बाप लगा करता है। रविदास जी वहां से खड़े हो गए, की विपरो मैं अपनी औकात भूल गया था, कि मैं स्थान तो आपके जूतों में हैं मैं वहां पर बैठता हूं जाकर, आप सभी भोजन ग्रहण करो, रूस्ट मत हो। इस बच्ची को दोष लग जाएगा। अब रानी मना करती है रविदास बोले की बेटी गुरु का आदेश पालन होता है आप मत बोलो। जहां पर जूते खोल रखे थे वहां पर जाकर रविदास जी बैठ गए और अपना भजन करने लगे। अब ब्राह्मण भोजन करने लगे फटाफट, अब प्रत्येक एक ब्राह्मण के साथ रविदास जी भोजन खा रहे हैं 700 पंडित और 700 ही रविदास जी रूप बन गए, और उन सभी के साथ भोजन ग्रहण कर रहे हैं। पंडित के सामने बैठे पंडित बोल रहे हैं कि देख तेरे साथ चमार रोटी खा रहा है, दूसरा बोलता है कि तेरे साथ भी तो खा रहा है अब सारे कूद कूद पड़े। रविदास जी कहते हैं कि है ब्राह्मणों- कि अब मेरी और बेइज्जती ना करो मैं तो देखो यहां पर बैठा हूं, मुझे बदनाम मत करो। सभी पंडितों ने देखा कि वह वहां पर भी बैठा है और 700 के रूप वहां पर इनके साथ खड़े। तब रविदास जी खड़े हुए और बोले कि पेट भरो ना तो तुम्हें भगवान का ज्ञान तुम तो पेट बरन बरन की का ठेका ले रखे हो। 

    संत रविदास जी द्वारा अपने अंदर सोने का जनेऊ दिखाना

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    तुम जनेऊ इस मोटे-मोटे जैसे टांग रखे हो रविदास जी बोले कि इन जनेऊ से तुम्हारी मुक्ति नहीं होने वाली। भक्ति से मोक्ष होगा कहते हैं कि अपना एक हथियार और ले रखे थे चाम छीलने का। वह तो एक लीला थी वह कौन सा खाल निकालते थे वे न्यू करके दिखा दिया कि देखो मेरे अंदर सोने का जनेऊ है तुम तो इस सूत के भोज मरो। तब कहते हैं 2 घंटे तक प्रवचन किए उस संत ने। 700 के 700 पंडितों ने उस जनेऊ को काट कर फेंक दिया। और संत रविदास जी के चरणों में शीश समर्पण कर दिया और नाम ले लिया। 
    रविदास जी कहते हैं कि उन ब्राह्मणों का सवा-मण सूत हुआ था। ऐसे उन्होंने 700 पंडितों का उद्धार कर दिया।
    तो यहां पर बता रहे हैं कि विष्णु पुराण कि एक सत साधक के सामने 1000 श्राद्ध खाने वाले बैठे हो उनका भी उद्धार और भगत का भी उद्धार।

    संत रविदास जी महाराज द्वारा मीराबाई को उपदेश देना

    एक समय रविदास (ravidas) जी और परमेश्वर कबीर (Kabir Das) जी यह लगभग इकठ्ठे ही रहते थे और रविदास जी ने कबीर परमेश्वर से उपदेश ले लिया था उस समय उसी राजा के उसी नगर में परमात्मा कबीर जी और रविदास जी उस नगर के बाहर किसी गरीब भक्त के घर में सत्संग कर रहे थे एक हफ्ता 10 दिन का, वहां रुके थे उनका उद्देश्य था कि उस पुण्यात्मा को सत मार्ग पर लगाने का।
    कबीर, सौ छल छिद्र मे करु अपने जन के काज ।
    गोता मारू स्वर्ग मै, जा बैठु पाताल ।
    गरीब दास ढुंढता फिरू, अपने हीरे मोती लाल ।।
    वह जो सत्संग चल रहा था मीराबाई (Meera Bai) के उस रास्ते पर था जिस रास्ते से वह मंदिर को जाती थी मीराबाई सुबह-सुबह मंदिर में गई वह घंटा दो घंटा मंदिर में अपनी स्तुति करती थी भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर गीत गाती थी गुणगान करती रहती थी पूजा पाठ करती थी 2 घंटे 3 घंटे के बाद वह मंदिर से आती थी आते समय उसने देखा कि एक भगत के घर में कुछ लोग इकट्ठे हो गए हैं और दो भक्त वहां बैठे हैं उसने पता करने के लिए गई कि क्या हो रहा है यह तो पूछे कहीं कोई परमात्मा की चर्चा करने वाले साधु संत तो नहीं आए। मीराबाई ने जाकर पूछा कि क्या कारण है कैसे एकत्रित हुए हो तो वहां के व्यक्तियों ने बताया कि महारानी यहां पर संत आए हैं भक्त आए हैं यह सत्संग कर रहे हैं सत्संग करेंगे अभी शुरू होने वाला है मीराबाई ने सोचा आज इनके वचन सुनकर ही चलते हैं सत्संग का समय हो गया था सत्संग प्रारंभ किया और सतसंग के अन्दर सृष्टि रचना सुनाई। परमात्मा को पता था कि आज एक परमहंस आया है और इसको परमात्मा का ज्ञान समझाना अति आवश्यक है सृष्टि रचना के अंदर सुनाया गया की ब्रह्मा विष्णु महेश यह अविनाशी नहीं है इनका जन्म और मृत्यु होता है ब्रह्मा विष्णु महेश की माता दुर्गा है और पिता ज्योति निरंजन अर्थात काल है। इस प्रकार मीराबाई ने यह कथा सुनी यह कथा सुनकर तुरंत उचात्ती बन जाती है उसने प्रश्नोत्तरी की बाद में दोनों महापुरुषों से। 
    मीराबाई ने उस तथ्य को बार-बार समझ कर उनके चरणों में प्रार्थना की कि हे प्रभु ! हमने तो आज तक यह ज्ञान सुना नहीं था हमने तो श्री ब्रह्मा श्री विष्णु कृष्ण को पूर्ण परमात्मा मान रखा था ।
    प्रभु आपने जो ज्ञान दिया है यह बिल्कुल सत्य है क्योंकि संत कभी झूठ नहीं बोलते हैं परमात्मा मेरा कल्याण करो प्रभु ने देखा कि ठाकुरों की लड़की है।

    कबीर साहिब जी के संकेत से रविदास द्वारा मीराबाई की परीक्षा लेना

    कबीर साहब ने सोचा कि ठाकुरों की लड़की है, छुआ-छात बहुत होती थी उस समय और हम कबीर साहब जुलाहा जाति से संबंधित है और रविदास जी चमार जाति से। चमार जाति और भी ज्यादा नीची मानी जाती थी उस समय। तो परमात्मा ने उस लड़की की परीक्षा लेने की सोची की यह पूर्ण रुप से परमात्मा को चाहती है जाती है या समाज जात पात में यह एलजी हुई है लोक् लाज में उलझी हुई है तो भक्ती नहीं कर पाएगी। तब कबीर साहेब ने रविदास से संकेत कर दिया कि मैं तेरे पास उस लड़की को भेजूंगा आप इसको केवल प्रथम मंत्र दे देना। परमात्मा ने कहा की बेटी जाओ।
    वह भक्त बैठा है रविदास नाम है उनका, उनसे उपदेश ले लो मीराबाई ने जाकर कहां की। है संत! जी मुझे उपदेश दे दो, रजा करो मेरे उपर, रविदास जी ने कहा कि बहन मीराबाई आप ठाकुरों की लड़की है उच्च जाति की और मैं चमार जाति से संबंध रखता हूं मैं छोटी जाति का हू। मीराबाई दुनिया तेरी उपर हंसी करेगी और तेरा जीना दुस्वार कर देगी। और तेरा जीना दूभर कर देगि। तब मीराबाई ने कहा कि आप मेरे पिता में आप की बेटी और आग लगे समाज के, आप तो मेरा कल्याण करो सब परमात्मा ने संकेत किया कि दे दे नाम। की यह तो परमात्मा चाहने वाली आत्मा है परमात्मा को पाएगी उसके बाद मीराबाई सत्संग में जाने लगी । और सत भक्ति करके कबीर परमेश्वर ने उनको मोक्ष प्रदान किया।

    कबीर साहेब और रविदास जी द्वारा वेश्या गणिका के साथ चौसठ लाख शिष्यों की परीक्षा लेना

    एक समय की बात है कबीर साहिब जी के 64 लाख शिष्य हो चुके थे। कबीर साहिब जी को लगा के इनको मेरे प्रति कोई लगाव नहीं है यह मेरे चमत्कार और लीलाओं और अपने सुखों को देखकर, और देखा देखी नाम ले रखा है। इतनी कड़ी परीक्षा ली कबीर साहिब जी ने। इसलिए यह उदाहरण पेश कर दिया कि अपने गुरु को कभी शक की दृष्टि से मत देखना नहीं तो आपकी भक्ति बर्बाद हो जाएगी अगर ग्रुप के अंदर तरह की भी दोष देख लिया तो।
    एक दिन काशी की मशहूर वेश्या जिसका नाम गणिका था वह काशी की सबसे सुंदर वेश्या थी और सबको मालूम था कि यह वैसी बदऔरत है। कबीर साहिब जी ने उसको अपना मार्ग समझाया और बताने लगे कि बेटी यह मनुष्य जन्म ऐसे बर्बाद करने के लिए नहीं मिला अज्ञानता में किसी को नहीं पता कि किस से क्या गलती हो जाए। अब इस कर्म को त्याग कर भगवान की भक्ति में लीन हो जा। गणिका बोली कि महाराज मुझे नाम दे दो। आज के बाद हमने अपना भक्ति मार्ग ही पकड़ना है, चाहे भूखी ही रह जाऊं। वह लड़की अपने उस सब को त्याग कर पूर्ण रूप से भक्ति भाव में लग गई। एक बीमारी और है हमारे इस संसार में की जो छवि एक बार आ गई उसे दोबारा उतारते नहीं। वह लड़की गणित का भक्ति करती रही और उसे 6 महीने हो गए नाम लिए और लोग फिर भी उसे वैश्या कह कर बुलाते हैं। कबीर साहिब जी बोलने की बेटी एक काम कर तू आज हमारा। गणिका बोली कि यह जान भी आपकी है महाराज ! जहां चाहो वहां ला लियो। 
    कबीर साहेब जी बोले कि तू ऐसा करना कल खूब हार सिंगार करके अच्छे सुंदर कपड़े पहन कर हमारे साथ चलना। लड़की ने सुबह उठ कर नहा धोकर अच्छा सिंगार करके अच्छे कपड़े पहन कर चल पड़ी। कबीर दास जी और रविदास जी एक किराए पर हाथी ले आए, हाथी के ऊपर आगे तो रविदास जी को बैठा दिया और पीछे कबीर साहिब जी विराजमान हो गए और बीच में लड़की गणिका को बैठा दिया, और एक बोतल में गंगा जल भर लिया, और लड़की के कंधे पर हाथ रख लिया वह उनकी पुत्री थी लेकिन जिसमें जैसा विकार वह वैसा ही देखा करते हैं। एक हाथ से उस लड़की के कंधे पर हाथ रख लिया और दूसरे हाथ से गंगाजल पीने लगे जैसे कोई शराब पी रहे हो दुनिया की दृष्टि से और बाजार से निकलने लगे, जो भी देखते कहने लगते कि आओ भैया तो मैं दिखाऊं कि हम तो पहले ही कहते थे कि यह तो गुंडागर्दी है औरतें इसके पास जाती हैं और तुम माना ना करते थे और उनके शिस्यो को लावे गुद्दी पकड़ पकड़ कर और बोलते देख तुम्हारे गुरुजी के कुकर्म हम तो पहले ही कहते हैं कि यह कोई संत नहीं है जो अनजान थे वह सोचने लगे कि गुरु जी ने तो चाला पाड़ दिया हमको तो कैसा भी नहीं छोड़ा। लेकिन उन बुद्धि भ्रष्टों ने यह नहीं सोचा। कि यहां महापुरुष यह कुकर्म हाथी पर बैठकर करेंगे, पर बुद्धि भ्रष्ट हो गई हमारी। अपने गुरु को गालियां देने लगे, कहने लगे मैंने तो ऐसा ही नाम ले लिया था हमने तो दो बात सुन ली थी और 64 के 64 लाख शिस्य ढह गए नरक में चले गए, गुरु के प्रति दोष देखकर। कहते हैं दो शिष्य बच गए अर्जुन और सर्जुन। वह किसी काम से बाहर गए हुए थे और वापस आए और उन्होंने लोगों से सुना कि गुरु जी ने ऐसे ऐसे काम कर दिया है, कतई अच्छा काम नहीं किया हम तो बाहर निकलने योग्य नहीं रहे। उन्होंने पूछा कि ऐसा क्या हो गया- बोले कि ऐसे ऐसे गणिका के साथ बुरा कर्म करते देखा सारी दुनिया ने। अर्जुन सर्जुन बोले की मुंह संभाल कर बात करो गुरुदेव जी ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते है, बोले कि तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है दोनों भगत भोले की हां हमारे नहीं जच रही है। 
    बोले कि आज भी जा कर देख लो उस गणिका वेश्या के घर बैठे हैं दोनों। दोनों भगत को यह मालूम था कि वह बिल्कुल गंदी औरत है लेकिन उनको यह मालूम नहीं था कि गणिका ने नाम ले लिया है क्योंकि वह साल भर में वापस आए थे उन्होंने वहां जाकर देखा कि महाराज आंगन में बैठे हैं लड़की उनके पैर दबा रही है वह खाट पर बैठे हैं ऐसे गली में खड़े होकर दोनों भगत कहते हैं कि है गुरुदेव ! कबीर साहेब तो सब जानते थे जानिजन थे सब । साहिब बोले की क्या बात है? के गुरुदेव आपको यहां नहीं बैठना चाहिए था कि यह तो नीच का घर है कबीर साहेब बोले कि तुम तो गुरु हो गए फिर मेरे, तुम तो गुरु को आदेश देने लगे। बोले कि तुम्हारा कोई ठोर ठिकाना नहीं यहां पर भाग जाओ यहां से। अब दोनों विद्वान थे समझदार थे। साहिब बोले कि तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती तुम तो ग्रुप में दोष निकालने लगे यह सुनते ही दोनों के दोनों एक टांग पर खड़े हो गए कहने लगे कि महाराज गलती हो गई, हम पापियों पापियों का उद्धार कब होगा। 

    अर्जुन सर्जुन को पार लगाना

    कबीर साहिब बोलने लगे कि दोबारा आऊंगा मैं। दोनों बोले कि कब आओगे। साहेब बोले कि यह अभी नहीं बताऊंगा, 100 वर्ष भी लग सकते हैं 150 सौ वर्ष भी लग सकते हैं 200 वर्ष भी रख सकते हैं। बोले कि महाराज इतने दिन हम कैसे रहेंगे साहिब बोले की मेरी कृपा से तुम इसी शरीर में रहोगे। फिर गरीब दास जी के रूप में कबीर साहिब जी दोबारा आए छुड़ानी में। तब अर्जुन सर्जुन नाम देकर मुक्त किया। 200 सवा 200 के उम्र के अनिवार्य हो चुके थे वह और गरीब दास जी छोटे से थे जब उनको नाम देकर पार किया था उन्होंने
    रविदास संग हाथी चड चाले, संग ले ली गणिका माई।
    और गंगोदक सीसी मे भर कर, मदिरा जो पिए भाई।
    और चौसठ लाख ने भक्ति बहाई, मूर्खो ने न प्रतीत आती है, सत्गुरु अपना साथी है।
    इस बात को देख कर सारे काशी में चर्चा हो गई।

    संत रविदास जी के गुरु कौन थे?

    सभी लोग हमेशा यह जानने के लिए बेताब रहते हैं कि संत गुरु रविदास जी के गुरु कौन थे? इस विषय में लोगों के अनेक अलग-अलग विचार हैं लोगों में अलग-अलग भ्रांतियां फैली हुई है। कुछ लोग यह मानते हैं कि संत गुरु रविदास जी के गुरु, गुरु नानक जी हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि संत रविदास जी के गुरु संत कबीर साहिब जी हैं। गुरू परंपरा को बनाए रखने के लिए उन्होंने रामानंद जी को अपना गुरु बनाने का अभिनय करने के लिए कहा। संत कबीर साहिब जी ने रविदास जी को पूर्ण तत्व ज्ञान से अवगत कराया उन्हें परमात्मा का पूर्ण यथार्थ ज्ञान समझाया। तब रविदास जी को पूर्ण विश्वास हुआ कि संत कबीर साहिब जी ही पूर्ण परमात्मा है।

    संत रविदास जी ने जो सत भक्ति की थी जो ज्ञान कबीर परमात्मा ने उनको समझाया था वही ज्ञान आज वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज बता रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी टेलीविजन (साधना टीवी 7:40 से 8:40) के माध्यम से समस्त संसार को तत्वज्ञान समझा रहे हैं।

    वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र पूर्ण संत है। आपसे विनम्र निवेदन है कि पूर्ण संत, जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी से दीक्षा लेकर सद्भक्ति कर मोक्ष मार्ग अपनाएं। आध्यात्मिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज जी के अमृत प्रवचन साधना टीवी (7:40-8:40) पर अवश्य देखें। और संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित शास्त्र प्रमाणित पुस्तकें ज्ञान गंगा और जीने की राह अभी निशुल्क मंगवाने के लिए आर्डर करें।

    Comments

    1. Bhut hi achha gyan
      Jeevan ko sahi bhakti marg pr lgaye
      Jaisi bhakti Ravidas ji ne ki vaisi hi aap bhi kre

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    2. Sant Rampal Ji Maharaj ji hi ekmatr aisi sant hai jo sahi bhakti marg btate hai
      Ravidas ji vali hi bhakti 🙏😍

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    Based on the knowledge of Sant Rampal Ji Maharaj

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