कथा:- मनीराम कथावाचक और चंपाकली



कथा:- मनीराम कथावाचक और चंपाकली
कथा:- मनीराम कथावाचक और चंपाकली








मनीराम नाम का कथावाचक पंडित प्रसिद्ध था। हरियाणा के एक गांव में रामायण कथा का आयोजन किया गया। रामायण की कथा अधिक से अधिक ग्यारह दिन में संपन्न हो जाती है, लेकिन मनीराम पंडित ने तीन दिन में संपूर्ण की। विचार किया था कि कथा अधिक दिन चलेगी तो प्रतिदिन दान आएगा। इस प्रकार अधिक दक्षिणा आएगी। तीस दिन की कथा में मनीराम पंडित को तीस रूपए ही प्राप्त हुए। 


गांव के कुछ व्यक्तियों ने जिस दिन बने राम पंडित की कथा का समापन होना था, उसी से उसी समय दिल्ली से चंपाकली नाम की नाचने गाने वाली का नाच-गान करा दिया। पूरा गांव नाच-गान देखने के लिए उमड़ पड़ा। दो घंटे में चंपाकली को ₹500 मिले। पंडित जी के दुख का कोई वार-पार नहीं रहा।

रास्ते में गांव छुड़ानी था।

मनीराम जी को पता था कि यहां गरीबदास जी परम संत रहते हैं उनसे मिलकर आगे चलूंगा। संत गरीबदास जी के पास गांव तथा आसपास के गांवों के दस-बारह भक्त बैठे हुए थे। उसी समय पंडित मनीराम जी पहुंच गए। संत गरीबदास जी से राम-राम किया संत गरीबदास जी ने भी राम-राम कहां और उचित आसन दे कर बैठाया। कुशल मंगल पूछा तो मनीराम ने कहा - हे महाराज कलयुग का पहरा (समय) आ गया है। धर्म का नाश हो लिया है जान गेडा आ लिया है आधार जनता का धर्म के प्रति भाव समाप्त हो चुका है। धरती आसमान फट जाए तो भी आश्चर्य की बात नहीं है।


उपस्थित भक्तों ने पूछा पंडित जी! ऐसी क्या बात हो गई है मनीराम जी बोले कि क्या बताऊं संत गरीबदास जी तो सब जानते हैं भक्तों ने पूछा हे  महाराज! जी ऐसी क्या बात हो गई जिससे पंडित जी को ठेस लगी है। संत गरीबदास जी ने कहा कि:- 


गरीब, फूटि आंख विवेक की, अंधा है जगदीश।
चंपाकली को पांच सौ, मनीराम को तीस।।

भावार्थ:- जिस जगदीश नाम के व्यक्ति ने जानबूझकर शरारत करके मनीराम जी की कथा के भोग लगने वाले दिन नाचने गाने वाली लड़की का कार्यक्रम करवाया था। वह ज्ञान नेत्रहीन अंधा है। गांव के व्यक्तियों के बी विवेक (सोचने-समझने) की आंखें फूटी है यानी उन्होंने भी विचार नहीं किया कि धर्म कथा चल रही है। उसका विरोध ऐसे अभद्र तरीके से नहीं करना चाहिए था। हे भक्तों! मनीराम जी ने ग्यारह दिन में संपूर्ण होने वाली कथा को अधिक दक्षिणा के लालाचवश तीस दिन तक खींचा। गांव के कुछ शरारती लगती थी मनीराम जी के उद्देश्य से परिचित थे। इसलिए उन्होंने मनीराम जी को सबक सिखाने के लिए नर्तकी को बुलाकर महापाप किया है। 

यह सच्चाई सुनकर मनीराम जी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। वह सोच रहा था कि मैं 11:30 बजे भोग लगाकर सीधा यहां पहुंचा हूं। संत गरीबदास जी को कैसे पता चला। यह तो परमात्मा है। सब जानते है मनीराम आसन से उठा और संत गरीब दास जी के चरणों में गिर गया। और बोला प्रभु! आपने सही कहा कि मैंने लालच वश कथा को लंबी खींची थी। आप तो जानी जान हो प्रभु! धर्म-कर्म की और जीने की सच्ची राह बताइए| 

जब संत गरीब दास जी ने सत्संग करके उस पुण्यात्मा मनीराम जी को बताया कि :-

                   हे मनीराम! जी आप पाठ करके जनता से धन लेते हो। यह आप पर ऋण बनता है। इसे ब्याज समेत चुकाना पड़ता है। आपको यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है। और आप पाठ करने व सत्संग करने के अधिकारी भी नहीं है। आपने लोगों को आकर्षित करने के लिए गले में कंठी ( एक तुलसी के मनके को डोरे में डालकर गले में डालते हैं जो वैष्णव पंथ की पहचान होती है। ) डाल रखी है। एक माला एक सौ आठ रुद्राक्ष मनको की डाल रखी है जो मंत्र जाप के लिए होती है जिसे संत जन सुमरणी कहते है। मस्तिक में तिलक लगा रखा है पीले वस्त्र धारण कर रखें है। संत गरीबदास जी ने वाणी के द्वारा समझाया कि :- 

कन्ठी माला सुमरणी, पहरे से क्या होय।
ऊपर डून्डा साध का, अंदर राखा खोय।।

संत गरीबदास जी महाराज ने उदाहरण (राजा परीक्षित का उद्धार) द्वारा समझाया है कि :-
हे मनीराम! जब तक जीव का जन्म मरण समाप्त नहीं होता तो उसको परम शांति नहीं होती। फिर राजा बनकर राज की हानि लाभ में जलता है। निर्धन बनकर कष्ट उठाता है। फिर पशु-पक्षी आदि के शरीरों में कष्ट उठाता है। आप श्री विष्णु उर्फ कृष्ण जी के भक्त हो। (वैष्णव साधु विष्णु जी को अपना इष्ट देव मानते हैं) आप यह भी मानते हो कि श्री कृष्ण यानी श्री विष्णु जी ने श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान अर्जुन को सुनाया।

गीता ज्ञान सुनाने वाला गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में स्पष्ट करता है कि मेरे से अन्य कोई परमेश्वर है। हे भारत! सर्वभाव से उसकी शरण में जा। उस परमेश्वर जी की कंपा से ही तू परम शांति को और सनातन धाम (सतलोक) को प्राप्त होगा।

गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि जो साधक जरा (वृद्धावस्था) तथा मरण (मृत्यु) से छुटकारा अथार्त मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील है ( काल लोक के राज्य तथा स्वर्ग-महास्वर्ग तक की इच्छा नहीं रखते) वे तत् ब्रह्म से संपूर्ण अध्यात्म से तथा सर्व कर्मों से परिचित हैं।

गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि तत्वदर्शी संत मिलने के पश्चात उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहां जाकर साधक संचार में लौटकर फिर कभी नही आते है।  उस परमात्मा की ही भक्ति करनी चाहिए। 
जिससे संसार रूपी वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है यानि जिस परमात्मा ने विश्व की रचना की है। ( गीता का उल्लेख समाप्त )

संत गरीबदास जी ने मनीराम जी को बताया कि परम अक्षर ब्रह्म यानि तत् ब्रह्म की भक्ति मेरे ( संत गरीबदास जी ) के पास है। यदि आपको पूर्ण मोक्ष करवाना है तो दीक्षा लो और कल्याण करवा लो। मनीराम जी को गीता जी के सर्व लोग कंठस्थ थे तुरंत समझ गए। दीक्षा लेकर पाखंड त्याग कर अपना कल्याण करवाया।

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Based on the knowledge of Sant Rampal Ji Maharaj

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