गुरु बिन मोक्ष नहीं
गुरु बिन मोक्ष नहीं |
प्रश्न :- क्या गुरु के बिना भक्ति नहीं कर सकते ?
उत्तर :- भक्ति कर सकते है लेकिन व्यर्थ रहेगा
प्रश्न :- कारण बताए ?
उत्तर :- परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है :-
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान ।
गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण ।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु किन्ह ।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ।।
कबीर, राम कृष्ण बड़े तिन्हू पुर राजा ।
तिन गुरु बंद किन्ह निज काजा ।।
भावार्थ:- बिना गुरु धारण किए यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, दोनों व्यर्थ हैं यदि आपको संदेह हो तो अपने वेदों और पुराणों में प्रमाण देखें।
श्रीमद्भागवत गीता चारों वेदों का सारांश है। गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा है कि हे कृष्ण ! मैं आपका शिष्य हूं, आप की शरण में हूं।
गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा कि तू मेरा भक्त है पुराणों में प्रमाण है कि रामचंद्र जी ने वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर वहव व राज काज में वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि कि आप जी तो श्री कृष्ण जी और श्री राम जी से बड़ा किसी को नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरु बना कर अपनी भक्ति की, और मानव जीवन सार्थक किया। इससे सहज में ज्ञान होना चाहिए कि अन्य व्यक्ति बिना गुरु बनाएं भक्ति करते हैं तो कितना सही है, अर्थात व्यर्थ है।
गुरु के बिना देखा देखी कहीं सुनी भक्ति को लोक वेद कहते हैं। लोक वेद का अर्थ हैं - किसी क्षेत्र में प्रचलित भक्ति का ज्ञान जो तत्वज्ञान से विपरीत है।
जो साधना पूरा हिंदू समाज कर रहा है, वह सब गीता वेदो मैं वर्णित ना होने से शास्त्र विरुद्ध साधना हुई जो व्यर्थ है।
कबीर, गुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यो थोथा भूस छडे मूड किसाना।
कबीर, गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे ना साथ रहे अज्ञानी।।
इसलिए गुरु जी से वेद शास्त्रों का ज्ञान समझना चाहिए जिससे कि शास्त्र अनुकूल साधना करके मानव जीवन धन्य हो जाए।
Nice knowledge
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